यूक्रेन पर क्रेमलिन के आक्रमण के बाद से ही रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव बढ़ा है। यूरोप के देश इस बात से चिंतित हैं कि गैस पर रोक से इस सर्दी या उससे पहले ही आर्थिक और राजनीतिक संकट पैदा हो सकती है।
यूक्रेन पर क्रेमलिन के आक्रमण के बाद से ही रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। यूरोप के देश इस बात से चिंतित हैं कि रूस द्वारा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में रोक लगने से इस सर्दी या उससे पहले ही आर्थिक और राजनीतिक संकट पैदा हो सकती है।
यूक्रेन पर क्रेमलिन के आक्रमण के बाद से ही रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। यूरोप के देश इस बात से चिंतित हैं कि रूस द्वारा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में रोक लगने से इस सर्दी या उससे पहले ही आर्थिक और राजनीतिक संकट पैदा हो सकती है।
यूरोप के देश सर्दियों से पहले भूमिगत गैस भंडारण को भरने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। रूसी कटौती से रिफिलिंग स्टोरेज भी महंगा हो सकता है। प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल ग्लासमेकर और स्टील निर्माता जैसे कई ऊर्जा इंडस्ट्री द्वारा किया जाता है।
मौजूदा वक्त में यूरोप की भूमिगत भंडारण 57 फीसद भरी हुई है। यूरोपियन यूनियन का नया प्रस्ताव हर देश को भंडार को 1 नवंबर तक 80 फीसद तक पहुंचाने का है। एनालिस्ट्स का मानना है कि बुल्गारिया, हंगरी और रोमानिया जैसे देश मौजूदा स्पीड से 80 फीसद के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएंगे। इसके साथ ही जर्मनी, ऑस्ट्रिया और स्लोवाकिया जैसे देशीं को भी भंडारण में बहुत मुश्किल होने वाली है।
यूक्रेन युद्ध से पहले यूरोप के देश रूसी गैस पर 40 फीसद तक निर्भर थे। यूरोप ने 2022 के आखिरी तक रूसी गैस आयात में दो तिहाई तक की कटौती करने और 2027 तक रूसी गैस पर निर्भरता पूरी तरह से खत्म करने का प्लान तैयार किया है। लक्ष्य 850 मिलियन डॉलर के रूसी गैस को हर दिन कम करना है।]
कई देश अक्षय ऊर्जा पर ध्यान दे रहे हैं लेकिन यह काफी होता नहीं दिख रहा है। 2030 तक कोयले को बाय-बाय करने के प्लान पर काम कर रहे जर्मनी ने अस्थायी तौर पर कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को फिर से शुरू करने के लिए कानून बना रहा है।
इसकी आशंका बेहद कम है क्योंकि यूरोपियन यूनियन के नियम-कानून कहते हैं कि सरकारों को घरों, स्कूलों और अस्पतालों को गैस की आपूर्ति की जाएगी। और अगर किसी देश में गैस की कमी होती है तो वह देश दूसरों से मदद ले सकते हैं। ऐसे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस सर्दी यूरोप के देशों को बहुत दिक्कत आती नहीं दिख रही है लेकिन इन देशों ने जल्द ही कोई और उपाय नहीं खोजा तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं।
 
			



